
Badal
July 14, 2021
गहरे मानसून का बादल हूँ,
बन के मोती पिघलता हूँ,
ग़र करोगे याद पाओगे मुझे
मैं हर सावन सफ़र करता हूँ ।
मैंने देखा है तेरी आँखों में
यादों की एक कशिश सी,
वो शिकवे वो शिकायतें,
जज़्ब अरमानों का वो सूखा दरिया,
अबकी ऐसा करता हूँ,
तेरी ही छत से होके गुजरता हूँ,
बस तेरे ही आँगन में बरसता हूँ ,
गहरे मानसून का। बादल हूँ,
बन के मोती पिघलता हूँ ।
शौक़-ये-वस्ल में ज़िंदा है
अरमानों की महफ़िल,
रहने दो।
वफ़ाओं जफ़ाओं का बोझ है
दास्तान-ये-ज़िंदगी पर,
रहने दो।
मिट्टी गीली है छू लो इसे,
इसकी हर सौंधी ख़ुशबू में
तेरी ख़ातिर ही बसर करता हूँ,
गहरे मानसून का बादल हूँ,
बन के मोती पिघलता हूँ,
ग़र करोगे याद पाओगे मुझे
मैं हर सावन सफ़र करता हूँ ।
You May Also Like

Man’s Search for Meaning
March 6, 2021
Bark For Heart
September 30, 2019