 
	Badal
						January 9, 2024
					
		
	
	
		
	
	
		
		
		 
		
		
	
	
		
		
		 
		
		
	
			
				
						 
						 
				
					
						 
						 
				
					
						 
						 
				
				
			
				
	
	
	
गहरे मानसून का बादल हूँ,
बन के मोती पिघलता हूँ,
ग़र करोगे याद पाओगे मुझे
मैं हर सावन सफ़र करता हूँ ।
मैंने देखा है तेरी आँखों में
यादों की एक कशिश सी,
वो शिकवे वो शिकायतें,
जज़्ब अरमानों का वो सूखा दरिया,
अबकी ऐसा करता हूँ,
तेरी ही छत से होके गुजरता हूँ,
बस तेरे ही आँगन में बरसता हूँ ,
गहरे मानसून का। बादल हूँ,
बन के मोती पिघलता हूँ ।
शौक़-ये-वस्ल में ज़िंदा है
अरमानों की महफ़िल,
रहने दो।
वफ़ाओं जफ़ाओं का बोझ है
दास्तान-ये-ज़िंदगी पर,
रहने दो।
मिट्टी गीली है छू लो इसे,
इसकी हर सौंधी ख़ुशबू में
तेरी ख़ातिर ही बसर करता हूँ,
गहरे मानसून का बादल हूँ,
बन के मोती पिघलता हूँ,
ग़र करोगे याद पाओगे मुझे
मैं हर सावन सफ़र करता हूँ ।
 
		
		
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