• Poems

    Badal

    गहरे मानसून का बादल हूँ, बन के मोती पिघलता हूँ, ग़र करोगे याद पाओगे मुझे मैं हर सावन सफ़र करता हूँ । मैंने देखा है तेरी आँखों में यादों की एक कशिश सी, वो शिकवे वो शिकायतें,…

  • Poems

    कुरुक्षेत्र

    समय आया बड़ा विचित्र है,क्षितिज पर अजीब चित्र है,धरा का भी हाल बेहाल है,दिशाओं में फैला काल है,व्याधि घुली है फिज़ाओं में,आसमानी सागर भी लाल है,पार्थ संबोधित है अर्जुन से,खड़ा कलयुगी कुरुक्षेत्र में।। पतंगा लील रहा ज्योति…

  • Page 3,  Poems

    मेरे हृदय की अविरल गंगा

    (1) नतमस्तक बैठा हूं सुनहरी सांझ के गलियारों में हृदय में अपने सृजन की विस्मित झंकार लिए, गर्भ की चोटिल हुंकारों का, विरही तन की मरमित पुकारों का, ज्वर से तपती रातों में बोझिल आंखों के करुण…