Category: Poems
Badal
Nostalgia
ये समर विशेष है
शिशिर की ठिठुरती रात
कुरुक्षेत्र

समय आया बड़ा विचित्र है,क्षितिज पर अजीब चित्र है,धरा का भी हाल बेहाल है,दिशाओं में फैला काल है,व्याधि घुली है फिज़ाओं में,आसमानी सागर भी लाल है,पार्थ संबोधित है अर्जुन से,खड़ा कलयुगी कुरुक्षेत्र में।। पतंगा लील रहा ज्योति को,दूषित, कलुषित जल गंगा का।आदि चीख रहा अनादि को,व्यभिचारी सुर मन मृदंगा का।किस्से…
You must be logged in to post a comment.