मेरे हृदय की अविरल गंगा
(1) नतमस्तक बैठा हूं सुनहरी सांझ के गलियारों में हृदय में अपने सृजन की विस्मित झंकार लिए, गर्भ की चोटिल हुंकारों का, विरही तन की मरमित पुकारों का, ज्वर से तपती रातों में बोझिल आंखों के करुण…
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(1) नतमस्तक बैठा हूं सुनहरी सांझ के गलियारों में हृदय में अपने सृजन की विस्मित झंकार लिए, गर्भ की चोटिल हुंकारों का, विरही तन की मरमित पुकारों का, ज्वर से तपती रातों में बोझिल आंखों के करुण…