चाहतें यूं ही नहीं अक्सर मंज़िल को तरस जाती हैं,बस्ती और वीराना दोनों मुझसे नाराज़ है। सैलाब कब का, पशेमां हो कर गुज़र चुका है, …

I Say Chaps
चाहतें यूं ही नहीं अक्सर मंज़िल को तरस जाती हैं,बस्ती और वीराना दोनों मुझसे नाराज़ है। सैलाब कब का, पशेमां हो कर गुज़र चुका है, …