
टहलते कदम…
March 12, 2019



एक उम्र से एक मुकाम की तलाश में…
जाने कब किस ओर ले कर चलते हैं
मुझको ये मेरे टहलते कदम।
मैं तो बस मैं हूं…घुमड़ते अब्र सा
हवाओं के रुख पर टहलता हूं।
एक उम्र से एक मुकाम की तलाश में…
पथरीले रास्तों पर कभी
खुशनुमा वादियों में कभी
लहरों के वेग सा चपल कभी
ठहरी झील सा सबल कभी
गहरे सागर के गर्त में कभी
मरु के तपते समर में कभी
अनजान शिखरों की चोटियों पर
तो कभी
ज़िन्दगी के महकते बसर में।
एक उम्र से एक मुकाम की तलाश में…
शब्दों में सुकून तलाशता मैं
हर रोज़ एक नए सफर पर निकलता हूं।
मैं तो बस मैं हूं… घुमड़ते अब्र सा
हवाओं के रुख पर टहलता हूं।।

Related

Previous
Kumbh... The story of 'Sankalp'

Newer
Badla
You May Also Like

Moksha….The Himalayan Spa Resort
April 19, 2019
Badla
March 17, 2019
6 Comments
P k sinha
Superb kabita
Sunil jain
बहुत खूब कविता। शिशिर तुम्हारा जवाब नहीं।
Rahul Varma
Awesome, as always.. Great
PRABHAT
Again a masterpiece Sir,
viinod
Really….some heroes have no …..face..
Anshu Sharma
Wonderful poem