चाहतें यूं ही नहीं अक्सर मंज़िल को तरस जाती हैं,बस्ती और वीराना दोनों मुझसे नाराज़ है। सैलाब कब का, पशेमां हो कर गुज़र चुका है, …

I Say Chaps
चाहतें यूं ही नहीं अक्सर मंज़िल को तरस जाती हैं,बस्ती और वीराना दोनों मुझसे नाराज़ है। सैलाब कब का, पशेमां हो कर गुज़र चुका है, …
एक शाम यादों में , एक शाम आहों में। एक पुराना बरगद और उसपे बैठा इक परिंदा। गाँव की गलियाँ वो रंगरलियाँ, इमली के पेड़ …
I had been a fiddle-footed gadabout especially with regards to my thoughtful sojourns in social gatherings and events but this Fais-dodo of excitement was different. …